दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं
अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ