रोज़ साँसों की जंग लड़ते हुए,सब को अपने ख़िलाफ़ करते हुए!यार को भूलने से डरते हुए,और सब से बड़ा कमाल है ये!साँसें लेने से दिल नहीं भरता,अब भी मरने को जी नहीं करता!!' >
इक बरस और कट गया ‘शारिक़’, रोज़ साँसों की जंग लड़ते हुए, सब को अपने ख़िलाफ़ करते हुए! यार को भूलने से डरते हुए, और सब से बड़ा कमाल है ये! साँसें लेने से दिल नहीं भरता, अब भी मरने को जी नहीं करता!!