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Raat Shayari

Hum har roz na jane kitne anjaan udhaar 5/5 (1)

हम हर रोज़ न जाने कितने अनजाने उधार दिया करते हैं, 
जैसे जुगनुओं को ताक कर कांपते पत्ते सर्द रातें गुज़ार दिया करते हैं! 

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