जो भी चाहेगा ऐसा वो, होलिका सा राख में मिल जाएगा...
😇❤
- गवेश जोगाणी 'गवेषक'
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होली का रंग, लगे बेरंग…
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होली के इस पावन पर्व को, चार पंक्तियाँ है अर्पित..
देश के शूर जवानों को भी, करता हूँ मैं इसे समर्पित..
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फागुण का महिना है आया, साथ वो अपने होली लाया…
खुशियों से भरे रंगों की, हाथ में अपने झोली लाया…
तोतल-तोतल बोली बोले, टाबर खेले देखो होली..
बादल ने भी आसमान से, रंगों की पिचकारी खोली..
हर किसी के दिल में प्रेम का, वादित मधुर राग-आलाप..
क्यों न रंग दे उसी रंग से? भूलकर सभी अन्य विलाप..
गालों पर जब रंग चढ़े, बढ़े हसीन हुस्न का सिंगार..
पास आये जल जाए जलन से, वैसा यह प्रेम पर्व अंगार..
दिल में कैद सारे अरमान, पिंजरे थे जो खुल रहे है..
आजाद है कुछ ऐसे कि, प्रेमरंग में झूल रहे है..
देखो! बहारे होली की, प्रत्येक उर में झमक रही..
रंगों की ये प्रभा निराली, सतरंगी सी चमक रही..
गुलरु के रंग भरे तन पे, नाच रही रंगीली परियां..
पानी में रंग घुले कुछ ऐसे, मीठे नीर का ही एक दरियां..
रंगों ने ही प्रेम बढ़ाया, प्रेम भी मदहोश है..
चूमा उसका अधर रंग से, रूह उसकी जैसे बेहोश है..
हर जगह पर प्रेम है छाया, सर्व ही अपने, ना कोई पराया..
सभी धर्म को एक मानकर, पर्व एकता भाव है लाया..
कारवाँ भी आज इस जग का, इंद्रधनुष सा रंगीन है..
पर पता नहीं क्यों? नुक्कड़ का घर, सुनसान-गमगीन है..
बढ़ते पाँव चला उस घर में, हाथों में अपने समेटे रंग..
एक शूर वहाँ लेटा था, सीने पर उसके लपेटे तिरंग..
धवल वस्त्र मैंने थे पहने, धवल वस्त्र उनके भी तन पर..
मेरे हृदय में रंग था छाया, मातम छाया उनके मन पर..
इस बार होली हम साथ मनाए, दो रोज पहले यह बात हुई है..
पूनम के उजियारे जग में, इस दर अमावस रात हुई है..
देश की रक्षा में उसने, सीने पर गोली खाई..
राजनेताओं ने इसमें भी चुनावमत की खोली पाई..
प्रतिशोध मांग रहा परिवार, टूट गया जिसका आधार हो!
आपस के बैर को दूर कर अब, दुश्मन का संहार हो!
केसरिया रंग चढ़े विजय का, वैरी रक्तरंजित हो..
घर के भेदी दूर भगाओ, यही एक आलाप-संगीत हो..
युद्ध से अशांति दिखती है तो, गिरेबान में झांक के देखो..
इज्जत-आबरू लूटी तुम्हारी, खुद को सीमा पर ताक के देखो..
सैनिकों के वीररंग को, हमने किया था गौण है..
देखो! देखो! आज गगन का इंद्रधनुष भी मौन है..
तेरी वीरता पर कुछ कहने की, मेरी कोई औकात नहीं..
सरहद पर जाकर लिखने की, मेरी कोई ताकात नहीं..
तू तो देश का नंदन है, तुझे सर्व का वंदन है..
शीशे झुके तेरे सम्मान में, तेरा हार्दिक अभिनंदन है..
रंग भी अब बेरंग लगे हैं, तेरी शहीदी संग लगे हैं..
देश से बढ़कर सतरंगी क्या हो? भांग में भी अब भंग लगे हैं..
प्रतिशोध की ज्वाला यह जो, जली है उसको ना अब बुझने देंगे..
दहन होलिका के साथ ही, आतंक सर्द-समूह ध्रुजने देंगे..
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ से हम एक बने है, हमको कोई खाक ना कर पायेगा..
जो भी चाहेगा ऐसा वो, होलिका सा राख में मिल जाएगा…
😇❤
– गवेश जोगाणी ‘गवेषक’

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