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मैं होली नही मनाऊँगा
बड़ी मुश्किल से समेटा है तुझे इन रंगों में
उसे इन फिज़ाओ में बिखेर नही पाऊंगा
आज भी मेरे इंतजार में गाँव की गलियां सूनी पड़ी है
इतने वर्षों बाद लौटा भी तो कदम नही रख पाऊंगा
वो आँखें जो पत्थर हो गयी मेरी याद में
उनमे आंसू फिर आये तो बह जाऊंगा
वो सपने वो आरजुएं फिर जागी
तो जी नही पाऊंगा
गली से रंग लिए गुजरता है कोई तो सहम जाता हूँ
होली के रंगों में तुझे बिखरता देख नही पाऊंगा
दुनिया भर की दौलतें और सौहरते पा भी ली
फिर भी कितनो का कर्जदार  रह जाऊंगा
मैं रंग नही उड़ाऊंगा
बड़ी मुश्किल से समेटा है तुझे इनमें
दुबारा फिज़ाओ में बिखेर नही पाऊंगा
मैं होली नही मनाऊँगा
#सहदेव शर्मा

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